सुधि पाठकों !
यह है एक प्रयास, हिन्दी पत्रिका 'कादम्बिनी' की पठनीयता बरकरार रखने का। कभी हमारे पास धर्मयुग, सरस्वती, साप्ताहिक हिंदुस्तान, मतबाला जैसी पत्रिकाएं थी किंतु समय के साथ कुत्सित प्रतिद्वंदिता एवं हिन्दी को शास्त्रीय भाषा तक सिमित करने के मतलबी कोशिशों ने हम से वो साहित्यिक धरोहरें छीन लीं। अभी कुछ दिन से कादम्बिनी की प्रासंगिकता एवं अस्तित्व पर अंदेशा जताया जा रहा है। महत्वपूर्ण ये है कि ऐसे प्रयास अंतरजाल पर अधिक हो रहे हैं। तो हमारी भी एक कोशिश है, अंतरजाल पर आप से जुड़ने की।आप ही बताएं 'आपकी कादम्बिनी' प्रासंगिक है या नही ?
- सह संयोजक,
कादम्बिनी क्लब, बंगलोर